Wednesday, January 25, 2012

वसंत विरह (Vasant Virah)


= वसंत विरह =
ठाट-बाट साज-बाज धारिलीन द्रुम राज,
फूले फले ठारे आज सबको सुहाये है |
तरुवल्ली को निहोर मोर पिकचारो ओर,
करत पपीहा शोर अति हरखायो है ||
शीतल सुगंध मंद वायु करे दंद फंद,
कजकी कली मिलिंद खोलि सचुपाये हैं |
साजी सुख को समाज अंग ले अनंग आज,
आए हैं वसंत राज तोहे क्यों ना भाये हैं ||
बसे कौन गाम पीया पति यान पायो तिया,
धीर नहिं धार जिया हिया विकसत है |
कूकि कूकि कोयलिया छेदि दियो मोर हिया,
मोपे यह सोतनिया रोज ही खिजत है ||
पूछे खग प्रिय कहाँ जाय बसे जाने कहां,
लाज को बसेरो यहाँ नित बिलखत है |
चकनीती निसि हन्त कढी रही मोर तंत,
ओरन की है वसंत मोरो बस अंत है ||
फूलत आम अनार पलास, चहुं दिसि गुंजत मंद मिलिंद है,
कोकिल टूक करे हिय को इन, पापी पपीहा को नाहिन अंत है ||
रैन न बासर चैन रहे, दुखदायक दर्जे, दुष्ट अनंग है ,
'कृष्ण' बिन घनश्याम मिले, सखि अंत कहूं निकसत है ||


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