Wednesday, January 25, 2012

ऐसे नर धीर ही नागरिक कहाते हैं (Aise Nardheer hee Naagrik Kahaate Hain)


* ऐसे नर धीर ही नागरिक कहाते हैं *
१०.११.१९२७
-दोहा-
गुणागार सागर सरस, नगर नागरिक जान,
जिगर विगर गर जासु है, नगर नागरिक जान ||
-मनहर छंद-
देश के सुधार में प्रपंच का प्रचार मेट
पित्तामार काम में न नेक जी चुराते हैं |
विघ्न के प्रचारकों को लत्ता उपहार करें,
तत्ता बोल सुन के न शील को डुलाते हैं ||
नित्यता के योग से अनित्यता ढुराय देत,
सत्यता का मान अलबता कर पाते हैं |
शुद्ध सता की महत्ता का न अपमान करें,
ऐसे नर धीर ही नागरिक कहाते हैं ||
मन में गुमान गहि करते न हानि कहीं,
पर सुख हेत दुःख दु:सह उठाते हैं |
सुख में आसक्त नहीं स्वार्थ हेतु भागे नहीं,
मीठी बोली कही कही सब को सुहाते हैं |
संकट संयम की तेज तलवार गहि,
हाथ माहि प्राण गहि उन्नति सुझाते हैं |
श्रीहरि सुमिरि के न डरपे कुंठाव कहीं,
ऐसे नर धीर ही नागरिक कहाते हैं ||
मान दे सुजानता को कान गुरु ज्ञानता को,
दान दीं जनता को दया का दिलाते हैं |
छानबीन सत्यासत्य तत्व का निदान करें,
ध्यान दे सुधार में सुजानपन पाते हैं |
ज्ञान हीन जनता को ज्ञानामृत पान करा,
अपनी ही तान में न फूट को तनाते हैं |
आन बाण शान जो न धर्म की बिगाड़ते हैं,
ऐसे नरधीर ही नागरिक कहाते है ||
साहसी सुजान सुख साधना सुलभ करें,
सीख सिखा साथियों को सुपथ सुझाते हैं,
मान मद मोह मति मुग्धकारी ममता की,
मथ के मलीनता मदान्धता मिटाते है |
पाय पूर्वज प्रताप ताप सर्व दूर करें,
दुनिया में देवता की द्युति दिखलाते हैं |
धर्म्धारी अधिकारी के सुजान सहकारी,
ऐसे नरधीर हे नागरिक कहाते हैं ||
धर्म में उदार अनरीत में न व्यय करें,
जाया की न माया के गुलाम बन जाते हैं |
जाती के कुशासन को आगे हो सुधार करें,
लोक निंदा माधुरी न जीभ को चखाते हैं |
परावलम्बता विटाल स्वावलंबता संभाल,
दादुर से कूप के न भूप रह जाते हैं|
चिंता अरु आलस के फंड में न बंद जाँय,
ऐसे नरधीर ही नागरिक कहाते हैं ||
संत उपदेश का सदैव सुधा पान करें,
अनघों के ओध में न कर्म से अघाते हैं |
मानसिक क्लीबतान कर्म की कुठार बनें,
नित्य बल पौरुष से दुःख को दुराते हैं |
लिक्खे पढ़ें सत्यता से विविध व्यापार करें,
तोल - मोल बोल में न ग्राहक फसाते हैं|
प्यारे देश बन्धु का न खून चूस पेट भरें,
ऐसे नर धीर ही नागरिक कहाते हैं ||
बैर छोड़ देश प्रेम में ही अनुरक्त रहें,
कुमति के जाए खलखेल को नसाते हैं |
सुख का डाटा सुधार मस्तक पर लेत धारि,
बुरी टेव टारी गुणानिधि बन जाते हैं |
उन्नति का देखि के उठान अनुराग करें,
माया के प्रपंच में न आप फस जाते हैं |
देश की कुरीति को सुधार सुख साज भरे,
ऐसे नरधीर ही नागरिक कहाते हैं ||
वेड को बिसारे नहीं धर्म सुधा पीवे सही,
पेट भर प्रेम पय पी सुमान पाते हैं |
दया दान दीनों को दे सुखेत समोद जीयें,
काल के कुयोग को सुयोग से कटाते हैं |
प्रण रोप रोप के ही दुष्टता को दूर करें,
मित्र मुख ग्रास लें और को खिलाते हैं |
सत्य सदाचार से ही विश्व के सुमित्र बनें,
ऐसे नर धीर ही नागरिक खाते हैं ||
जाकर परदेश निज देश को गुमान मान,
भारत की भूषा को न धारते लजाते हैं |
विविध व्यापार व्यवसाय कला विद्या सीख,
निज देशवासी की न खाल खिचवाते हैं |
पाश्चिमात्य देश की विदग्ध बोली बोल बोल,
धुल में न मातृभाषा मान को गिराते हैं|
फेशन के फेर में न देश में दरिद्र भरें,
ऐसे नरधीर ही नागरिक कहाते हैं ||
ईंट कहीं की मांगे रोड़ा कहूं को लगाय,
भानमती सा न ज्ञान देश में सिखाते हैं |
विद्या से विनय पाय सुदृढ़ सुशक्ति धारि,
अपनी मरालता न बक में मिलाते हैं |
सत्य गुण गर्भितों की गुरुता का गान करें,
झूठे गुण गर्वितों के गर्व को गिराते हैं |
"कृष्ण" की कृपालु कला से कुतंत्र क्लेश हरें,
ऐसे नरधीर ही नागरिक कहाते हैं ||
(बमौके कार्तिक मेला नुमाईश शहर उज्जैन क्षिप्रा पार सभा में पठित)
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