Tuesday, January 3, 2012

विद्वत्संगति (Vidwatsangati)


विद्वत्संगति
(दोहा)
कांच हेम के संग ते, कंचन सो दिखलात,
तैसे पंडित संग ते, मूरख चतुर लखात ||
हीन संग से मति घटे, सम ते समता पाय,
अधिक गुणी के संग ते, ज्ञान अधिकता पाय ||
शुक समान बक ना पढ़े, कोटि जातां जो कीन,
बागला हंस न होसके, मूढ़न होंहि प्रवीण ||
गुणी पुरुष के बंस में, निर्गुण कैसे होय,
पद्मराग की खान में, कांच न देखा कोय ||
कीट कुसुम संग पाय के, भूप सीस चढ़ जाय,
देवन की मूरत बने, जब पत्थर घड जाय ||
सज्जन संग अनेक गुण, कैसे वरने कोय,
लोह हेम बन जात है, पारस संगति होय ||
शेष शारदा व्यास ते, कहते लगे न पार,
सो महिमा शुभ संग की, कैसे कहे गंवार ||
काव्य शास्त्र आनंद ते, रसिकन के दिन जात,
मूरख के दिन नींद में, करत कलह उत्पात ||
बिन साधन बिन द्रव्य के, बुद्धिमान बलवान,
परशुराम रघुराज से, साधत काज महान ||
लाखों मौके रंज के, भय के कोटिक होय,
पल पल पीड़ित मूढ़ को, पंडित को नहिं सोय || 
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श्रीकृष्ण जोशी के पद्य संग्रह में बहुत सी अनूठी कवितायें हैं, जो गीत के रूप में बहुत ही सुन्दर रचनाएं हैं. उदाहरण के तौर पर, फिल्म श्री ४२० का गीत 'दिल की बात कहे दिल वाला' स्व श्रीकृष्ण जोशी द्वारा ही रचित है. इस बात का रिकॉर्ड नहीं है ना ही फिल्कार ने इनके नाम से इस गीत को उपयोग में लिया था. परन्तु १९३० से १९५० की कई पांडुलिपियों में यह श्रीकृष्ण जोशी द्वारा लिखित होना पाया जाता है.
उनकी रचनाओं में गीत हैं :
मैं हूँ एक सिपाही, छुप छुप आते हो माखन चुराते हो, कुसुम तुम क्यों कुम्भ्लाते हो, प्रबल संघ निर्बल से हारा है, ऐ जननी बता दे, भैया देखो आँख उघार, रात की करामात, जग में सब से बड़ो रुपैयो, ॐ जय शिव ओमकारा, आँखों में, भांग महिमा, हिफाज़त, जिसका जी चाहे, मिट नहीं सकता कभी लिक्खा हुआ तकदीर का


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