Friday, January 27, 2012

बसंत से अनुरोध (Basant se Anurodh)


बसंत से अनुरोध
(बसंत तिलका)
प्यारे बसंत! हित वर्धक मोदकारी,
आओ सुखेत सुखदायक प्रीतिकारी |
है आज उत्सव यहाँ सुख साज धारो,
आओ सुवीर! ऋतुराज ! यहाँ पधारो ||
प्यारे बसंत ! इस दुर्दय काल में ही,
आई तुम्हें न करुणा जग की विदेही |
क्या आपको हम हितेच्छुक कहें हमारे,
या भाव प्रस्तर समान बने तुम्हारे||
मायापते ! प्रकृतिभक्त !! वसंत वीर !!!
क्या आप दास पद देख नहीं अधीर |
क्यों आपकी नहिं कला पर-प्रेम बाली,
पीयूष दृष्टि हमपे अबलों न डाली ||
हे भारतीय जन के प्रति प्रेम धारी,
आओ सदैव प्रति वर्ष दया प्रचारी |
दे दो हमें सुखद साज नवीनता के,
पालो बसंत ! बहुमान सुरेशता के ||
है हिन्दू ने पतन का विष खूब खाया,
संसार त्याग मद के रंग में रंगाया|
हैं आप तो प्रकृति के अनुकूलचारी,
आओ तुम्हें सतत स्वागत मोह्कारी ||
छूटी समाज हित से रूचि है हमारी,
व्यक्तित्व मुक्ति हित प्रीती बढी हमारी |
श्रीराम राज्य सम सर्व सुधार कारी,
आओ बसंत ! शुभ शोभन शक्तिधारी ||
क्या मेट ही न सकते यह दास भाव
जो हो गया सतत भारत का स्वभाव |
प्राचीन दुर्मिट विचार दुराग्रही को,
दे दो नवीन उपयुक्त प्रणालिका को ||
मायाविनी प्रकृति के पुतले बने हो,
हा ! हन्त वास्तविकता बिसरा रहे हो |
जो रूप पाक्षि पशु में जिस देश का है,
वो आज भी न पर फैशन धारता है ||
संपत्ति राज पदवी धनधान्य भोगी,
रुपान्वित प्रचुर मोड़ सुखार्थ भोगी |
वर्चस्व श्रीविधि विधान स्वतन्त्रता के
पाके रहे तुम वशी कमनीयता के ||
देखो बसंत ! जग मादकता चलेगी,
तो निर्विवाद अपकीर्ति तुम्हे मिलेगी |
विख्यात नाम अपना न बिगाड़ लेना,
बता लगे न इसको यह सोच लेना ||
उत्साह उन्नति जगा बल पुष्टि देने
तो भी न भारत विचार सुधार देते |
जो आप भी न कुदशा इसकी फिराते,
तो विष्णु अंश कुसुमाकर ! क्यों कहते ||
हो मस्त सर्व अपनापन छोड़ दोगे,
तो एक काल तुम भारत के न होगे |
हिंदुत्व छोड़ पर धर्म जिन्होंने,
टाले सुधार सब भारत के उन्होंने ||
हो शुष्क को सरसता उपजा सजाते,
निर्जीव को तुम सजीव सदा बनाते |
काठिन्य को तुम विनम्र बना लुभाते,
ऐसे बसंत ! गुण से तुम हो सुहाते ||
खोना पड़े स्वजन के हित मान भारी,
पाना पड़े स्वजन के  मिस हानि भारी|
तो भी स्वदेश हित कष्ट सहे विचारी,
क्या शम्भू हेत नारी हुऐ मुरारी ?
हो आप को यह निवेदन हो अभय,
तो हो खुशामत पसंद मदांध काया |
धारो दया, कर धरो इसको, उबारो,
पावों पड़े पर इसे मत लात मारो ||
ऐसी हवा अब चला कर दो सुधार,
मेटे सदैव मति के सब दुर्विकार |
सद्भाव से हम परस्पर बार बार,
हों भारतीय हम, भारत पे निसार ||
'श्रीकृष्ण' चन्द्रहित रास रचा तुम्हीने,
छे मॉस काल तक वास किया तुम्हीने|
वे आज भाव नहिं है मन में किसी के,
सोचो नवीन रचना ऋतुराज नीके ||
राजा चिरायु अनुकूल बनें हमारे,
सद्भाव से प्रिय प्रजाहित प्रेमवारें |
उत्साह उन्नति बढ़ा पुरुषार्थ प्यारे,
वीर ! प्रमोद बल बुद्धि करो हमारे ||
सत्कार्य कष्ट करते जन ताप हारी,
आशा करो सुकल भारत की बिहारी |
हैं आप भी सरस सत्कवि साधू वादी,
तो आईये प्रिय बसंत ! सुधार वादी ||
हे ! राम कृष्ण शिव शक्र मनोज मित्र,
कार्यानुकूल सुदशा कर दो विचित्र |
संसार शोभन सजाकर साधुधीर,
हां ! भारतीय हिय को कर दो सुवीर ||
माया पते ! ऋतूपते ! प्रकृतीश प्यारे,
आओ बसंत ! कुसुमाकर शक्तिधारे |
हे वीर ! श्री पति ! सुरार्चित काज सारो
हे भारतीय ! ऋतू राज ! भले पधारो ||
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