Friday, January 27, 2012

भारत सुत तुम वीर बनो (Bharat Sut Tum Veer Bano)


भारत सुत तुम वीर बनो 
२८.११.१९२८
दुर्गुण गढ़ में आग लगाकर सुगुण विजय माला पहनो,
ब्रम्हानंद सुधा चखने को 'भारत सुत तुम वीर बनो' ||


घटियापन की घटती करके बढ़िया कुल उन्नति करना,
अनुचित भोगों को चूरण कर आलस्यासुर संहरना |
ठगियों की ठग बाज़ी ठग कर बैर विरोध मिटा चलना,
सबसे बिरद बदाई पाकर शत्रु भाव से बच रहना |
परतिरिया को देख समझ लो आदर से माता बहनों,
उद्यम पर अधिकार जमाकर 'भारत सुत तुम वीर बनो' ||
ब्रम्हचर्य वृत को धारण कर पर हित तरकस कर धरना,
चेतन जड़ संयोग कराकर तन पंज़र में बल भरना |
बंधन काट कड़े विषयों के पशुपद्धती को ठुकराना ,
भारत वैभव नष्ट न करना संयम की विधि अपनाना |
गहन भाव गुरुजन के लखकर विनय दिखाकर बरपाना
सत्य तत्व का परिचय करिके आत्म बल से हे युवाओं,
सुख स्वतन्त्रता दिलवाने को 'भारत सुत तुम वीर बनो' ||
विधियुत कर्मों को आचार के विश्वविभव करतल करिये,
शुद्ध भाव से मानव मंडल बसकर जनसंगृह करिये |
नीति रीति से रिपुजय करिके अपयश से छटकर रहिये,
गर्व गपोडे जनता से सुन मूकभाव मन में धरिये |
देशबंधु के दुःख सुनकरके मन विस्तृत करलो इतनो,
सब प्रकार की विपति हरण को 'भारत सुत तुम वीर बनो' ||
प्रेमजाल को गूथ जगत में पाखंडी माया हरना,
पचरंगी परिवार पञ्च का पंचातन पग में धरना |
बनकर दैवी जीव जगत में सुख समृद्धि संगृह करना
विद्वन्मंडल को वशकर परिवार अमंगल का दलना |
कल्पविटप 'श्रीकृष्ण' चरण को निर्गुण वा साकार गनो,
भावी भारत के हित भजकर 'भारत सुत तुम वीर बनो' ||
विप्रवृन्द की रक्षा के हित भृगुपति नृप मद चूकियो,
अर्जुन ने भारत के हित में दु:शासन संहार कियो |
दुखी दीन पर लखी अनर्थ  रावण कुल राम विनाश कियो
निराधार बालक रक्षा हित हरि नरहरि अवतार लियो |
भले जनों की रक्षा कारण मुरलीधर वर धीर बनो
सज्जन की दुर्गति हरने को 'भारत सुत तुम वीर बनो' ||
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(बमौके मेला नुमाईश मवेशियां, सं. १९८५ नदी क्षिप्रा पार उज्जैन के कविसम्मेलन व् मुशायरा में कविता सुनाई गई ३ रुपये इनाम मिला. कविता दर्जे दोयम में रखी गई|)

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