Sunday, February 19, 2012

उजाड़ू ढोर आते हैं (Ujaadoo Dhor Aate Hain)

उजाड़ू ढोर आते हैं
ज़रा होशियार हो चलना,
उजाड़ू ढोर आते हैं ||
उन्हें तुम छेड़ना मत हो,
लुभाना किंचित भी मत हो |
बिगड़ जाते हैं वे पल में,
बिखर जाते हैं छिन-छिन में |
हिय को व्याकुल करते हैं,
उजाड़ू ढोर आते हैं ||

ज़रा भी हार नहीं खाते,
हिये में ज़रा न शरमाते |
सदा रहते हैं गरमाते,
राग रंग पर के नहिं भाते |
अकाद में फूलते फिरते हैं,
उजाड़ू ढोर आते हैं ||

सीस पर वक्र नुकीले शस्त्र,
पाँव में चार खुरीले अस्त्र |
देह पर बालदार हैं वस्त्र,
अटल है स्फूर्ती वीराज हस्त्र |
स्वार्थ जिनको अपना प्रिय है,
उजाड़ू ढोर आते हैं ||
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“The earth holds the fool and holds the wise, endures that good and bad dwell (upon her); she keeps company with the boar, gives herself up to the wild hog.”- Athrva Veda





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