Monday, February 13, 2012

भूलों में (Bhoolon Mein)


zzz भूलों में zzz
२८.१०.१९२७

धरणी धन जन धाम मान पर झगडा बढ़ता जाता है,
मेलजोल घटते घटते सब ठौर विरोध सुनाता है ||
निसिदिन संपत्ति का क्षयकर अनुकूल मिले प्रतिकूलों में,
मिटी जा रही जाति {देश} किन्तु तुम भूल रहे हो भूलों में ||
कला, हुनर, विद्या की घटती बीमारी की बढ़ती है,
देशी माल विदेशी बेचें देशी कला विनसती है |
धर्म हमारा भूल रहे हैं भाव भक्ति है चूल्हों में,
मिटी जा रही जाति {देश} किन्तु तुम भूल रहे हो भूलों में ||
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[हिन्दी साहित्य सम्मलेन ग्वालियर. ता: १८.१०.१९२७ के नोटिस के विज्ञापन द्वारा प्रकाशित.
ता: १.१२.१९२७ के ग्वालियर हि. सा.सम्मलेन के अधिवेशन के लिये पढने को भेजी]
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