Wednesday, March 14, 2012

स्वदेश संगठन हित की आवश्यकता(Swadesh Sangathan Hit Kee Aawashyakataa)


स्वदेश संगठन हित की आवश्यकता
24.9.1930
कब तक जागोगे नींद से ए देश भाइयों,
घर की बुझाओ मिल के ए देश भाइयों ||
हीरे की वो प्राचीन ज्योति लुप्त हो गई,
कपड़ा बदन पे अब तो घर का  है ना भाइयों ||
खाने को अन्न है ना तन पे देश वस्त्र है,
संपत्ति सिन्धुपार गई देश भाइयों ||
कागज़ का रूपया चल गया शीशी मैं दूध है,
गायों पे छुरी चल रही ए देश भाइयों ||
कारीगरी समुद्र पार दूर चल बसी,
हाथों के  शस्त्र छिन गए ए देश भाइयों ||
ढूँढो तो एक सुई भी ना घर में देश की,
छाया दरिद्र सब जगह ए देश भाइयों ||
छोडो विदेशी वस्तुएं कंगाल जिससे हो,
खादी बदन पे धार लो ए देश भाइयों ||
खादी जगायगी यहाँ भारत की विभूति,
आज़ाद, धनी, वीर करेगी ए देश भाइयों ||
धीरज में तसल्ली से मिल के देश सुधारो,
होके वृत्ति स्वदेश के ए देश भाइयों ||
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