Wednesday, March 14, 2012

जीवन नया जगावेगी (Jeevan Nayaa Jagaavegee)

जीवन नया जगावेगी


माल भारती रुई नाज अलसी बाहर को जाता है,
वस्त्र कबाड़ खिलौने इंजन भारत भर में आता है|
कागज़ कर में आकर सोना चांदी घर से जावेगी,
दीन दरिद्री भूखी जनता "जीवन नया जगावेगी" ||

उधर देखिये लार्ड सायमन संग कमीशन आता है,
इधर एकताई का गाना कोंग्रेसदल गाता है |
धर्म विरोधी की तकरारें जहां तहां सुन पावेंगी
कहिये क्यों न गज़ब की बातें "जीवन नया जगावेगी "||

कहीं सुधा शुद्धि होती है कहीं अछूतोद्धार किया,
कहीं प्रचारक बेचें खद्दर त्याग विदेशी वस्त्र दिया |
ऐसे ही में वीर जयन्ती बार बार ललकारेंगी,
निर्बल जनकी आलस हरकर "जीवन नया जगावेगी "||

(सुर्यान्योक्ति)
कैसा विकत काल आया है कालानल रवि तपता है,
गर्मी से सब तड़प रहे हैं चैन न पल भर मिलता है |
रे मदमस्त ! दुखद उष्णान्शु पावस ऋतु अब आवेगी,
वह तेरा अभिमान मिटाकर "जीवन नया जगावेगी "||

विश्वामित्र पडका आडम्बर तूने वृथा धराया है,
कोमल कमोदिनी को मुरझा कुसुम कमल विकसाया है |
रे रवि ! दीन जनों की आहें तेरी कला घटावेगी,
सांझ हुवे पर 'चन्द्र चांदनी' "जीवन नया जगावेगी "||
O=O=O=OO=O=O=O=O=O=OO=O=O=O


(बमौके प्रताप जयन्ती ता: २२.५.१९२८ के कवि सम्मलेन, उज्जैन में पढी गई. सार्वजनिक सभा, उज्जैन के कहने से)

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