भारत सुत तुम वीर बनो
२८.११.१९२८
दुर्गुण गढ़ में आग लगाकर सुगुण विजय माला पहनो,
ब्रम्हानंद सुधा चखने को 'भारत सुत तुम वीर बनो' ||
घटियापन की घटती करके बढ़िया कुल उन्नति करना,
अनुचित भोगों को चूरण कर आलस्यासुर संहरना |
ठगियों की ठग बाज़ी ठग कर बैर विरोध मिटा चलना,
सबसे बिरद बदाई पाकर शत्रु भाव से बच रहना |
परतिरिया को देख समझ लो आदर से माता बहनों,
उद्यम पर अधिकार जमाकर 'भारत सुत तुम वीर बनो' ||
ब्रम्हचर्य वृत को धारण कर पर हित तरकस कर धरना,
चेतन जड़ संयोग कराकर तन पंज़र में बल भरना |
बंधन काट कड़े विषयों के पशुपद्धती को ठुकराना ,
भारत वैभव नष्ट न करना संयम की विधि अपनाना |
गहन भाव गुरुजन के लखकर विनय दिखाकर बरपाना,
सत्य तत्व का परिचय करिके आत्म बल से हे युवाओं,
सुख स्वतन्त्रता दिलवाने को 'भारत सुत तुम वीर बनो' ||
विधियुत कर्मों को आचार के विश्वविभव करतल करिये,
शुद्ध भाव से मानव मंडल बसकर जनसंगृह करिये |
नीति रीति से रिपुजय करिके अपयश से छटकर रहिये,
गर्व गपोडे जनता से सुन मूकभाव मन में धरिये |
देशबंधु के दुःख सुनकरके मन विस्तृत करलो इतनो,
सब प्रकार की विपति हरण को 'भारत सुत तुम वीर बनो' ||
प्रेमजाल को गूथ जगत में पाखंडी माया हरना,
पचरंगी परिवार पञ्च का पंचातन पग में धरना |
बनकर दैवी जीव जगत में सुख समृद्धि संगृह करना,
विद्वन्मंडल को वशकर परिवार अमंगल का दलना |
कल्पविटप 'श्रीकृष्ण' चरण को निर्गुण वा साकार गनो,
भावी भारत के हित भजकर 'भारत सुत तुम वीर बनो' ||
विप्रवृन्द की रक्षा के हित भृगुपति नृप मद चूकियो,
अर्जुन ने भारत के हित में दु:शासन संहार कियो |
दुखी दीन पर लखी अनर्थ रावण कुल राम विनाश कियो,
निराधार बालक रक्षा हित हरि नरहरि अवतार लियो |
भले जनों की रक्षा कारण मुरलीधर वर धीर बनो,
सज्जन की दुर्गति हरने को 'भारत सुत तुम वीर बनो' ||
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(बमौके मेला नुमाईश मवेशियां, सं. १९८५ नदी क्षिप्रा पार उज्जैन के कविसम्मेलन व् मुशायरा में कविता सुनाई गई ३ रुपये इनाम मिला. कविता दर्जे दोयम में रखी गई|)
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