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zzzzzz झूम रही है डाली zzzzzz
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१२.९.१९३४
सिन्धु पिता से निकल पिया घर चली वधूटी बाली,
सावन की बदरी नभपथ से उतरी काली काली |
बिच बिच बिजली झल झल झलके हीर माल गल डाली,
नभ से बिंदु कुसुम बरसाती उमंग भरी मतवाली ||
घनघन गगन ढोल बजवाती नभ से रस बरसाती
शुष्क जगत को सरस बनाती रवि आतप बिरसाती |
रुक रुक चली हरखती पिऊ घर सुन्दर सुखद नवेली,
प्रजाप्राण जीवन टपकाती मधुर मनोहर आली ||
त्रिविध वायु सन्देश सुनाया सुनकर सखी सयानी,
तरुवल्लियाँ विनय युक्त झुक झुक बनी समादर दानी |
हरख भरी बैठी सादर ले फूल फलों की थाली
उडि उडि नभचर स्वागत करते गावत गीत रसाली||
गिरिवर पति ने देखि समागत गृहिणी सुखद सयानी,
कर्ण मधुर मनहर मृदु गाती बही वायु रस सानी |
विविध नवल पट भूषन धारे सुन्दर देह सजाली,
ठौर ठौर पर संचित जल से भरी प्रेम की प्याली|
जहं जहं चतुरंगिणी सेना खग, मृग, अहि, झाब, सजवाली,
मेघनाथ नंदित तोपों की हुई सलामी आली |
गृह आई गृहिणी को गिरिपति सादर कंठ लगाली,
जुगनू दीपक से कर आरती हरखित अंक बिठाली ||
ठौर ठौर पर खग, मृग बैठे सुन्दर सभा सजाली,
वर मयूर का नाच रचाकर केका मधुर गवाई,
निशि में शशि नभ दीप लगाया सुभग चंद्रिका छाई |
सर में धवल कुमुदिनी की वर कुसुमित सेज लगाई |
झरनों ने नदियाँ ने हरखित कलकल बीन बजाई,
सूंड उठा गजनी ने गा दी मंगलमयी बधाई |
फन फैलाकर नागनाथ ने सिरपर छत्र लगाली,
तरुवल्ली ने चंवर डुलाये झूम रही है डाली ||
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